Sunday 4 November 2012

प्रिय बन्धुवों ,

आजकल हमारे देश में भ्रस्टाचार और राजनीति की विफलता पे बहुत विचार -विमर्स हो रहा है। सूचना के अधिकार और प्रसार माध्यमों की इसे गम्भीर बनाने में अहम् रोल रहा है। पर कभी -कभी मुझे प्रतीत होता है की  हमारी दिनचर्या अब इतनी तीव्र -गामी हो गयी है की हम किसी विषय पर कुछ पल को ध्यान दे कर आगे बढ़ जाते है, और इसमे हमारी  न्यायपालिका और व्यवस्थापिका की लालफितासाही और विलंबित प्रक्रिया कोढ़ में खाज का काम कर रही है।
दोस्तों , आज सर्वत्र भ्रस्ताचार और विषमता का राज दीखता है, पर जब हम सीरिया , लीबिया आदि से अपने देश की तुलना करते है ,तो अंतर स्पष्ट दीखता है , इक तरफ विरोध का जबाब तोप के गोले देते है जबकि यहाँ हममे से कोई भी निर्भीक हो के अपने शासको को बुरा-भला कह सकता है।

इसलिए व्यवस्था परिवर्तन या किसी लोकपालक की नियुक्ती नही बल्की हमारी संसद की लोकसभा की सदस्यों की योग्यता , उनकी पारम्परिक  श्रेष्ठता को पुनह स्थापित कर के और राज्य सभा आदि अपरोछ संगठनो के महत्व को कम कर के ही सरकार को ज्यादा जनहितकारी और जबाबदेह बनाया जा सकता है।

जब तक श्री गुजराल , श्री मनमोहन आदि राज्य सभा के तथाकथित विषिस्ट प्रतिनिधि हमारी मंत्रिमन्दल का नेतृत्व करते रहेंगे तबतक वस्तुस्थिति अईसी ही बनी रहेगी।

सो जरूरत हमे अटल बिहारी बाजपेयी , रमन सिंह , नितीश कुमार , शिला दीक्षित जैसे जननायको की है न की किसी लोकपाल या मोदी जैसे तानासाहो की !
धन्यवाद।